भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'काम बन्द' की तख़्ती टाँगे
रोज़ हुई हुईं हड़तालें,
उस पर बढ़ती महँगाई ने
पतली कर दी दालें,
कई कई दिन उसे कहीं भी
मिलती नहीं दिहाड़ी
दारू भी तो नहीं ,
कहाँ दुख बाँटे रामभजन ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,669
edits