भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
वैसे, जो सबके उसूल, मेरे उसूल हैं
लेकिन ऐसे नहीं कि जो बिल्कुल फिजूल हैं
तय है ऐसी हालत में, कुछ घाटे होंगे-लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको क़बूल हैं।हैं ।
मैं ऐसे लोगों का साथ न दे पाऊँगा
जिनके खाते अलग, अलग जिनका हिसाब है ।
'''किनारे ’किनारे के पेड़ पेड़’ नामक काव्य-संग्रह से'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits