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Kavita Kosh से
बड़े-बड़े ऊँचे महलों से पूछ रहा है मड़ईलाल
मेरा सब कुछ पराधीन है, किसका भारत है आज़ाद।
हर दल का अपना निशान है, मगर निशाना सब का एक
मेरी जेब कतरने वाला सिखा रहा मुझको मरजाद।
उससे क्या उम्मीद करोगे उसको बस कुर्र्सी कुर्सी से प्यार
जनता जाये भाड़ में वो बस अपना मतलब रखता याद।