गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
दीवारों से ऊंची ये खामोशियाँ / शिव रावल
1 byte removed
,
20:02, 29 सितम्बर 2023
ये भीड़ जो अजनबी-सी टहलती रहती है महफिलों में
ज़रा पूछे परवाने से के राख हुई शम्मा भला कैसे पिघल रही है
किनारे की दूरी को तरसता रहता है मांझी अक्सर
सशुल्क योगदानकर्ता ५
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,933
edits