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|रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार शेखर
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जीवन को, उन्नत करने के, भावों से, हम ने प्यार किया,
जो पिछड़ गया, उसका हमने, आगे बढ़ के सत्कार किया।
हर इंसां मेरा अपना है, सुन्दर जग मेरा सपना है,
जो मानवता का हनन करे, बस उसका ही प्रतिकार किया।
हैं एक दूसरे पर निर्भर जड़-चेतन दुनिया के सारे,
मैं उसको अच्छा कहता हूँ जिसने इस सच से प्यार किया।
वो बात कही जो हक़ की थी, अभिव्यक्ति पे ख़तरों के रहते,
हर मानव की आज़ादी का हमने पूरा सत्कार किया।
जो दिखता है वो प्रकटन है ईश्वर का जग में कहते सब,
इसलिए कहा करता खुलकर, मैंने दुनिया से प्यार किया।
देता जैसा पाता वैसा, जब से है जहाँ तब से है यही,
इसलिए सत्य का ही मैंने दुनिया में कारोबार किया।
सृजनकार्य से ही मैंने जीवन को करके संवर्धित,
जो जन-मन के विपरीत रहे उन भावों का संहार किया।
-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर
</poem>
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जीवन को, उन्नत करने के, भावों से, हम ने प्यार किया,
जो पिछड़ गया, उसका हमने, आगे बढ़ के सत्कार किया।
हर इंसां मेरा अपना है, सुन्दर जग मेरा सपना है,
जो मानवता का हनन करे, बस उसका ही प्रतिकार किया।
हैं एक दूसरे पर निर्भर जड़-चेतन दुनिया के सारे,
मैं उसको अच्छा कहता हूँ जिसने इस सच से प्यार किया।
वो बात कही जो हक़ की थी, अभिव्यक्ति पे ख़तरों के रहते,
हर मानव की आज़ादी का हमने पूरा सत्कार किया।
जो दिखता है वो प्रकटन है ईश्वर का जग में कहते सब,
इसलिए कहा करता खुलकर, मैंने दुनिया से प्यार किया।
देता जैसा पाता वैसा, जब से है जहाँ तब से है यही,
इसलिए सत्य का ही मैंने दुनिया में कारोबार किया।
सृजनकार्य से ही मैंने जीवन को करके संवर्धित,
जो जन-मन के विपरीत रहे उन भावों का संहार किया।
-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर
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