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Kavita Kosh से
ये न समझें कि आह करता हूँ <br><br>
बहर-ए-हस्ती* में हूँ मिसाल-ए-हुबाब* <br>
मिट ही जाता हूँ जब उभरता हूँ <br><br>
बहर-ए-हस्ती = जीवन सागर<br>
हुबाब = बु्लबुला <br> <br>
इतनी आज़ादी भी ग़नीमत है <br>
ये बड़ा ऐब मुझ में है 'अकबर' <br>
दिल में जो आए कह गुज़रता हूँ <br><br>