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चूंकि नहीं है कोई सहायक, हम लें चुंबन और हों पृथकरेत पर लिखा मैंने उसका नाम एक दिन हाथ सेनहीं, मैं हूँ आश्वस्त, तुम नहीं हो सकोगी मुझसे संयुक्तपरंतु बहा कर ले गयीं उसे अचानक तीव्र लहरेंदूसरे हाथ से लिख दिया मैंने उसका नाम फिर और मैं हूँ आनंदित, हाँ पूर्ण मन सेआनंदित अथकफिर कि इस प्रकार स्पष्टता से बना ले गईं अपना शिकार पीड़ा को भँवरें ।मैं स्वयं हो सकता हूँ मुक्त।
उसने कहा तू व्यर्थ ही करता रहता अथक प्रयाससदा के लिए मिला हाथ, हम करें सभी शपथ स्थगितताकि जब फिर कभी हम मिलें जो नश्वर है उसे अमर कदापि किया जा सकता नहींदोबारामैं स्वयं चाहूँ क्षरित होना छोड़कर जग की उजासये सोच, हम में से कोई न दिखाई दे तनिक भी व्यथितलिखकर मिटाया गया मेरा नाम उभर सकता नहीं कि पुराने प्रेम का अभी तक है शेषांश हमारा
मैंने कहा नहीं है तुम्हारा नष्ट होना कदाचित् आसानअब अंतिम उसाँस प्रेम की, नवीनतम शेष श्वासधूल मिलेंगी सारी तुच्छ वस्तुएँ अमर होगी ख्यातिजब उसकी छूटती सी नाड़ी, मौन रहती भावनातुम्हारे दुर्लभ गुणों को मेरी कविता बनायेगी महानजब घुटने मोड़े हुए हो, उसकी मृत्यु शय्या निकट विश्वासस्वर्ग में चमकेगी तुम्हारे नाम की अलौकिक ज्योति और उसकी बंद आँखें कर रहीं हो निर्दोषता का सामना
जहाँ एक ओर मृत्यु करेगी सकल संसार का दमनअब यदि तुम चाहो, जब सभी कर चुके हों उसे समर्पितवहीं हमारा प्रेम रहेगा अमरतुम ही हो, जो कर सकती हो, मिलेगा उसे नव जीवन फिर से पुनर्जीवित ।। </poem>