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{{KKRachna
|रचनाकार=विनीत मोहन औदिच्य
}}
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<poem>
अब नहीं जानता मैं कि तुम हो अनिद्य सुंदरी भी
या सत्य मेरी दृष्टि को करेगा अपमानित
मैं यह भी न जानता कि अन्य लोग करेंगे तनिक चिंता भी
बनाने के लिए तुम्हारे चेहरे को, मधुर स्वर्ग अपरिमित ।
पर दूसरों के द्वारा कहे शब्द, क्या हैं मेरे लिए?
उनके विचार, उनकी हंसी, उनकी मूर्खतापूर्ण दृष्टि
क्या तुम नहीं रहे हो संदेश मेरे गालों के लिए?
बताने के लिए समीप आ रहे मार्गों की समष्टि ।
मेरी रगों में विचित्र सा रक्त प्रवाहित है होता
एक घंटी, मेरे हृदय की धड़कनों पर करती प्रहार
समर्पित जीवन गौरव से आता और है जाता
प्रज्जवलित नयन, खुले अधर जो न कर सके पुकार ।
क्या नहीं छुपा है मेरे जीवन में तुम्हारा जीवन?
और मेरी आत्मा में तुम्हारी आत्मा, न जाने कोई जन ।।
</poem>
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अब नहीं जानता मैं कि तुम हो अनिद्य सुंदरी भी
या सत्य मेरी दृष्टि को करेगा अपमानित
मैं यह भी न जानता कि अन्य लोग करेंगे तनिक चिंता भी
बनाने के लिए तुम्हारे चेहरे को, मधुर स्वर्ग अपरिमित ।
पर दूसरों के द्वारा कहे शब्द, क्या हैं मेरे लिए?
उनके विचार, उनकी हंसी, उनकी मूर्खतापूर्ण दृष्टि
क्या तुम नहीं रहे हो संदेश मेरे गालों के लिए?
बताने के लिए समीप आ रहे मार्गों की समष्टि ।
मेरी रगों में विचित्र सा रक्त प्रवाहित है होता
एक घंटी, मेरे हृदय की धड़कनों पर करती प्रहार
समर्पित जीवन गौरव से आता और है जाता
प्रज्जवलित नयन, खुले अधर जो न कर सके पुकार ।
क्या नहीं छुपा है मेरे जीवन में तुम्हारा जीवन?
और मेरी आत्मा में तुम्हारी आत्मा, न जाने कोई जन ।।
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