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Kavita Kosh से
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भाषा के घीमिल-गोबर में
तोड़ रहे वे ,
नयी कहन की, नई जलेबी ।
दिखावे के जनसेवी ।
कुत्ते पाले ,
अपने-अपने भक्त कहाए ।
बदबू मारें,
बिनविचार की मूल्यदृष्टि का तर्क उछालें
घोर साम्प्रदायिक ,
चीमड़ मक्कार फ़रेबी ।
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