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|रचनाकार=अहमद शामलू
|अनुवादक=श्रीविलास सिंह
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<poem>
मैं कभी नहीं डरा मृत्यु से
यद्यपि
इसके हाथ थे अधिक नाज़ुक
फूहड़ता की बनिस्पत ।

मैं डरता था, फिर भी, मरने से
एक ऐसी भूमि में
जहाँ अधिक हो क़ीमत क़ब्र खोदने वाले की
मानव स्वतंत्रता से ।

ढूँढ़ते हुए,
खोजते हुए,
स्वतंत्रता से चयन करते हुए,
और अपने स्वत्व को बदलते हुए
एक क़िले में ।

यदि मृत्यु की क़ीमत है इन सबसे अधिक
मैं इनकार करता हूँ, स्पष्ट रूप से
कभी डरे होने से मृत्यु से ।

'''शोलेह वोलपे के अँग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद : श्रीविलास सिंह'''
</poem>
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