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सॉनेट — 27मैंने कहा — आओ मेरे साथ, और नहीं जाना किसी नेकहाँ या कैसे धड़क रही थी मेरी पीड़ा,कोई कार्नेशन पुष्प व नाविक गीत नहीं मेरे लिएकेवल एक घाव जिसे खोल दिया था प्रेम ने ।
मैंने पुन: कहा — आओ मेरे साथ, जैसे मर रहा होऊँ मैं,
और किसी ने नहीं देखा चन्द्रमा, जिसका रक्त बहा मेरे मुख में,
और या वह रुधिर, जो बढ़ा शान्ति से ।
ओ प्रिया ! हम विस्मृत कर सकते हैं शान्ति भरे सितारे को !
 
इसलिए जब मैंने सुना तुम्हारे स्वर को दोहराते हुए
आओ मेरे साथ, ऐसे लगा मानो कर दिया हो मुक्त
पीड़ा को, प्रेम को, डाट लगी मदिरा के रोष को ।
 
मेहराबी छत की गहराई से बहते उष्ण जल-स्रोत :
मैंने अपने मुख में फिर महसूस किया अग्नि का,
रक्त, कार्नेशन पुष्प, चट्टान और जलने के फफोले का स्वाद ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''
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