भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लूट लिया मण्डी ने / राम सेंगर

2,040 bytes added, 09:42, 3 दिसम्बर 2023
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=रेत की...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राम सेंगर
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत की व्यथा-कथा / राम सेंगर
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
दिन बदलेंगे
इसी आस में
हाड़-गोड़ दिन दिन-भर तोड़ें ।

हुए संकुचित
बुरी तरह से
आमदनी के सीमित साधन ।
भुस के मोल
मलीदा युग में
जीवन जैसा रहा न जीवन ।
लूट लिया
मण्डी ने सब कुछ
खाली गुल्लक को क्या फोड़ें ।

स्थितिरक्षा की
भेंट चढ़ गई
गर्मी खिंची लगन की सारी ।
उड़ने लगे
जोगड़े ज़्यादा
चूर-चूर छवि देख हमारी ।
आग न बुझी
अभी शिद्दत की
छोर तसल्ली का क्यों छोड़ें ।

मामूली-सी
कुव्वत लेकर
डटे हुए अन्धड़ के आगे ।
दुर्गति की
ताक़त के बल पर
पाँव जमा लेते हतभागे ।
ले अमर्ष में
लक्ष्यचेतना
कोशिश है, पथ का रुख मोड़ें ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits