भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुन तनहाई की / राम सेंगर

1,765 bytes added, 09:53, 3 दिसम्बर 2023
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=रेत की...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राम सेंगर
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत की व्यथा-कथा / राम सेंगर
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
है गलाव की ठण्ड
खिंची रौनक गरमाई की ।
हाड़-गोड़ ठिर गए
भरक उड़ गई रजाई की ।

कैसी-कैसी यादें कूकें
इस उजाड़ मन में ।
प्राणवती हो व्यापीं
ख़ाली घर के कण-कण में ।
जगह न कोई शेष बची है
धरा-उठाई की ।

एक किटकिटी-सी दाँतों में
बजती रुक-रुक कर ।
यह आवाज़ कहाँ से आती
देखें झुक-झुक कर ।
कान बजें, देती न सुनाई
धुन तनहाई की ।

बीज सृजन के जिन्हें
ऐशगाहों में पड़े मिले ।
बड़भागे हैं,उन्हें सेंत के
मिल तो गए सिले ।
बीती यहाँ, साधने में ही
लय चौपाई की ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits