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Kavita Kosh से
शरीर पड़ा है घाटी में जिसका, वो था उसका प्राण-प्यारा
जिसके सीने में सुलग रहा है रक्तरंजित वो काला घाव
रक्त की ठण्डी धारा में भी, जल रहा् रहा है वह ज्यों अलाव
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''