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|रचनाकार=कुमार मुकुल
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}}
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<poem>
महान
लोग हैं
होने की इच्छाएं हैं
मुझ में भी
तुम में भी
पर होना नहीं चाहिए
कुछ है भी नहीं
महानता जैसा
लोगों को
तरह-तरह से
छोटा करते जाने वाले
समाज में
कुंठजनित
टोपियां हैं यह
क्षण भर को
कैसी जंचती हैं
उदासियों के साम्राज्य में...।
</poem>
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महान
लोग हैं
होने की इच्छाएं हैं
मुझ में भी
तुम में भी
पर होना नहीं चाहिए
कुछ है भी नहीं
महानता जैसा
लोगों को
तरह-तरह से
छोटा करते जाने वाले
समाज में
कुंठजनित
टोपियां हैं यह
क्षण भर को
कैसी जंचती हैं
उदासियों के साम्राज्य में...।
</poem>