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|रचनाकार=सुरंगमा यादव
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|संग्रह=
}}
[[Category:हाइकु]]
<poem>
1
हरती व्यथा
रामायण की कथा
भव-तारिणी।
2
शिव ने बाँची
उमा के मन राँची
राम की कथा।
3
रामचरित
तर जाते पतित
भवसागर।
4
राम की कथा
हनुमत पधारें
होती है जहाँ।
5
जनक- प्रण
धनु भंजक करे
सिया वरण।
6
करें जतन
अभिलाषी राजन
धनु अडिग।
7
प्रभु की माया
छूते ही शिव-धनु
चरमराया।
8
राम का रूप
निरख सिया हुई
चित्र स्वरूप।
9
तोड़ दी प्रथा
एक सिया ही प्रिया
संकल्प लिया।
10
राम वियोग
सह न सके नृप
प्राणों का भार।
11
प्रभु की माया
सीता के मन भाया
मायावी मृग।
12
स्वर्ण हिरण
सिया के सुख पर
बना ग्रहण।
13
छद्मी रावण
पंचवटी ने देखा
सिया हरण।
14
राम निष्काम
वैदेही बिन भूले
पल विश्राम।
15
बल- सागर
सिया की सुध लाए
लाँघ सागर।
16
विनीत राम
भय बिन न छूटा
सिन्धु का मान।
17
तृण सहारा
सिया के संकल्प से
लंकेश हारा।
18
हुई अशोक
अशोक तले सीता
देख मुद्रिका।
19
मिली मुद्रिका
वियोग का अंतिम
चरण दिखा।
20
हठी रावण
अहं ने कर लिये
प्राण हरण।
21
रजक वाणी
पल में परित्यक्ता
जग कल्याणी।
22
अग्निपरीक्षा
कर न सकी रक्षा
व्यंग्य-बाणों से।
23
दुःख गहन
छोड़ आओ लक्ष्मण
सिया को वन।
24
दुःख गहन
हतप्रभ लक्ष्मण
शोक मगन।
25
प्रभु की वाणी
भ्रातृवृंद न जाने
गूढ़ सयानी।
26
तापसी रूप
सिया वन को चली
सहने धूप।
27
जा रही वन
सिया कोख में लिये
राम-रतन।
28
बहते अश्रु
हुआ क्या अपराध
बताओ प्रभु।
29
सघन वन
विधि के लेख पढ़े
एकाकी सीता।
30
विलापे सिया
वाल्मीकि ने आकर
धीरज दिया।
31
मायका नया
वाल्मीकि का आश्रम
सिया को मिला।
32
चलती सिया
काँटों में प्रतिपल
शुचिता बल।
33
राम सावधि
सीता तो वन गयी
थी निरवधि।
34
कैसा ये त्याग
वन बीच अकेली
गर्भिणी सीता।
35
एकाकी सीते
बहा श्रम सींकर
आत्मज पाले।
36
सिया की पीड़ा
वात्सल्य प्रवाह
बहा ले गया।
37
मनुज रूप
राम सिया ने सही
तपन-धूप।
38
सिया के संग
सारे ही सुख- रंग
राम ने त्यागे।
39
प्रजा के लिए
राम, सिया से दूरी
स्वीकार किए।
40
आहुति दे दी
सूर्य वंश के लिए
सिया प्रिया की।
41
राजा थे राम
ऐश्वर्य भरपूर
सुख था दूर।
42
सीता की कथा
हरण-परीक्षा-त्याग
औ’ भू समाधि।
43
व्यथित सिया
भू का आह्वान कर
विश्राम लिया।
-0-
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1
हरती व्यथा
रामायण की कथा
भव-तारिणी।
2
शिव ने बाँची
उमा के मन राँची
राम की कथा।
3
रामचरित
तर जाते पतित
भवसागर।
4
राम की कथा
हनुमत पधारें
होती है जहाँ।
5
जनक- प्रण
धनु भंजक करे
सिया वरण।
6
करें जतन
अभिलाषी राजन
धनु अडिग।
7
प्रभु की माया
छूते ही शिव-धनु
चरमराया।
8
राम का रूप
निरख सिया हुई
चित्र स्वरूप।
9
तोड़ दी प्रथा
एक सिया ही प्रिया
संकल्प लिया।
10
राम वियोग
सह न सके नृप
प्राणों का भार।
11
प्रभु की माया
सीता के मन भाया
मायावी मृग।
12
स्वर्ण हिरण
सिया के सुख पर
बना ग्रहण।
13
छद्मी रावण
पंचवटी ने देखा
सिया हरण।
14
राम निष्काम
वैदेही बिन भूले
पल विश्राम।
15
बल- सागर
सिया की सुध लाए
लाँघ सागर।
16
विनीत राम
भय बिन न छूटा
सिन्धु का मान।
17
तृण सहारा
सिया के संकल्प से
लंकेश हारा।
18
हुई अशोक
अशोक तले सीता
देख मुद्रिका।
19
मिली मुद्रिका
वियोग का अंतिम
चरण दिखा।
20
हठी रावण
अहं ने कर लिये
प्राण हरण।
21
रजक वाणी
पल में परित्यक्ता
जग कल्याणी।
22
अग्निपरीक्षा
कर न सकी रक्षा
व्यंग्य-बाणों से।
23
दुःख गहन
छोड़ आओ लक्ष्मण
सिया को वन।
24
दुःख गहन
हतप्रभ लक्ष्मण
शोक मगन।
25
प्रभु की वाणी
भ्रातृवृंद न जाने
गूढ़ सयानी।
26
तापसी रूप
सिया वन को चली
सहने धूप।
27
जा रही वन
सिया कोख में लिये
राम-रतन।
28
बहते अश्रु
हुआ क्या अपराध
बताओ प्रभु।
29
सघन वन
विधि के लेख पढ़े
एकाकी सीता।
30
विलापे सिया
वाल्मीकि ने आकर
धीरज दिया।
31
मायका नया
वाल्मीकि का आश्रम
सिया को मिला।
32
चलती सिया
काँटों में प्रतिपल
शुचिता बल।
33
राम सावधि
सीता तो वन गयी
थी निरवधि।
34
कैसा ये त्याग
वन बीच अकेली
गर्भिणी सीता।
35
एकाकी सीते
बहा श्रम सींकर
आत्मज पाले।
36
सिया की पीड़ा
वात्सल्य प्रवाह
बहा ले गया।
37
मनुज रूप
राम सिया ने सही
तपन-धूप।
38
सिया के संग
सारे ही सुख- रंग
राम ने त्यागे।
39
प्रजा के लिए
राम, सिया से दूरी
स्वीकार किए।
40
आहुति दे दी
सूर्य वंश के लिए
सिया प्रिया की।
41
राजा थे राम
ऐश्वर्य भरपूर
सुख था दूर।
42
सीता की कथा
हरण-परीक्षा-त्याग
औ’ भू समाधि।
43
व्यथित सिया
भू का आह्वान कर
विश्राम लिया।
-0-
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