भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डेरेक वालकाट |अनुवादक=अदनान कफ़ी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डेरेक वालकाट
|अनुवादक=अदनान कफ़ील दरवेश
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह वक़्त आएगा
जब निहायत शादमानी से
तुम अपने आप को ख़ुशआमदीद कहोगे पहुँचने पर
अपने दरवाज़े पे, अपने ही आईने में
और दोनों मुस्कुरा उठेंगे एक दूसरे के अभिवादन पर
और कहेंगे, यहाँ बैठो । खाओ
तुम प्यार करोगे फिर से उस अजनबी को जो था तुम्हारा आप ही ।
शराब देना । रोटी खिलाना । फिर से उसे अपना दिल देना
उस अजनबी को जिसने तुम्हें किया प्यार
ता-ज़िन्दगी, जिसे तुमने बर्तरफ़ किया
दूसरों की ख़ातिर, जो जानता है तुम्हें दिल से ।
उतार लाना मुहब्बत के ख़तूत किताबों की अलमारी से,
तस्वीरें, बेताब पंक्तियाँ,
छीलना अपनी ही तस्वीर आईने से ।
बैठना। छक के खाना अपनी ज़िन्दगी ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : अदनान कफ़ील दरवेश'''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=डेरेक वालकाट
|अनुवादक=अदनान कफ़ील दरवेश
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह वक़्त आएगा
जब निहायत शादमानी से
तुम अपने आप को ख़ुशआमदीद कहोगे पहुँचने पर
अपने दरवाज़े पे, अपने ही आईने में
और दोनों मुस्कुरा उठेंगे एक दूसरे के अभिवादन पर
और कहेंगे, यहाँ बैठो । खाओ
तुम प्यार करोगे फिर से उस अजनबी को जो था तुम्हारा आप ही ।
शराब देना । रोटी खिलाना । फिर से उसे अपना दिल देना
उस अजनबी को जिसने तुम्हें किया प्यार
ता-ज़िन्दगी, जिसे तुमने बर्तरफ़ किया
दूसरों की ख़ातिर, जो जानता है तुम्हें दिल से ।
उतार लाना मुहब्बत के ख़तूत किताबों की अलमारी से,
तस्वीरें, बेताब पंक्तियाँ,
छीलना अपनी ही तस्वीर आईने से ।
बैठना। छक के खाना अपनी ज़िन्दगी ।
'''अंग्रेज़ी से अनुवाद : अदनान कफ़ील दरवेश'''
</poem>