भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
न इतनी आँच दे लौ को के कि दीपक ही पिघल जाएँ।जाए।न इतने भाव भर दिल में के झूठे कि झूटा तर्क छल जाएँ।जाए।
सुना था जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है,
धन इतना दे अमीरों को के गिर सबके कि ढह सबका महल जाएँ।जाए।
तभी समझेंगे अपने लोग समझेगा मेरा यार मेरे प्रेम को शायद,जब उनको उसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाएँ।जाए।
है आधा पेट जो जीने न मरने दे गरीबों ग़रीबों को,दे इतनी आग चूल्हे सीने में के ये दिन भी निकल जाएँ।कि इनकी भूख जल जाए।
जिसे देखूँ, रहूँ जिंदा ज़िंदा कुछ ऐसा छोड़ दे वरना,तेरे तेरा यमदूत मुर्दा मानकर मान कर मुझको न टल जाएँ।जाए।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits