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Kavita Kosh से
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सन्नाटे के भूत मेरे घर आने लगते हैं।
छोड़ मुझे वो जब -जब मैके जाने लगते हैं।
उनके गुस्सा होते ही घर के सारे बर्तन,
उनको छूते ही उनसे बतियाने लगते हैं।
जिनकी खातिर खुद ख़ातिर ख़ुद को मिटा चुकीं चुके हैं, वो ‘सज्जन’,
प्रेम रहित जीवन कहकर पछताने लगते हैं।
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