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बाजुओं की थकान जिन्दा रख / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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26 फ़रवरी
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं,
है जो
खुद
ख़ुद
पे गुमान ज़िंदा रख।
तेरा बचपन
भी
ही
मर न जाय कहीं,
वो पुराना मकान ज़िंदा रख।
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