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Kavita Kosh से
आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं,
है जो खुद ख़ुद पे गुमान ज़िंदा रख।
तेरा बचपन भी ही मर न जाय कहीं,
वो पुराना मकान ज़िंदा रख।