भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वो सफल हो गये।
हम रमल हो गये।
टालते -टालते,
वो अटल हो गये।
सब सबल हो गये।
जो गिरे घुसे कीच में,
वो कमल हो गये।
बेदखल हो गये।
वो बगल हो गये।
</poem>