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Kavita Kosh से
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देश के हर धर्म, भाषा, जाति, जन से प्यार है।
है अगर हीरा तुम्हारे पास तो कोशिश करो,
काँच केवल पत्थरों से छाँटना बेकार है।
हो गए इतने विषैले हों अमर इस चाह में,
कोबरा को मार सकती अब हमारी लार है।
देश की मिट्टी थी खाई मैंने बचपन में कभी,
आज वो बनकर लहू मुझको रही ललकार है।
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