भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
खेत में तकरार होती एकता फिर मेड़ पे,
कुछ लड़कपन , कुछ नवाबी है अभी तक गाँव में।
मुँह अँधेरे ही किसी की याद में महुआ तले,
एक दीपक एक बाती है अभी तक गाँव में।
स्वाद में बेजोड़ लेकिन रंग इसका साँवला,
इसलिए गुड़ की जलेबी है अभी तक गाँव में।
सर झुकाता है सभी को छू चुके जब आसमाँ,
बाँस का ये पेड़ बाकी बाक़ी है अभी तक गाँव में।
चाय का वर्षों पुराना स्वाद जिंदा ज़िंदा है अभी,
शुक्र है चौरे की तुलसी है अभी तक गाँव में।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits