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इसीलिए पैरों के नीचे रहता है जूता।
पाँवों की रक्षा करते -करते फट जाता, पर,
आजीवन घर के बाहर ही रहता है जूता।
बूढ़ा होकर जब मुँह से कुछ कहता है जूता।
नाले के गंदे पानी में बहता है जूता।
कैसे लिख दूँ शे’र आख़िरी जूते के हक हक़ में,जीवन भर हर हक हक़ से वंचित रहता है जूता।
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