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|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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<poem>
नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल ।

जीवन के रथ पर चढ़कर
सदा मृत्यपथ पर बढ़कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रुजल धौत विमल
दृग -जल से पा बल बलि कर दूँ
जननि, जन्म श्रम संचित पल ।

बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन दूँगा
मुक्त करूँगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल ।
</poem>
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