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|रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
हमारी इस भरी-पूरी दुनिया में
हिमपात से ज़्यादा शान्त
और कुछ भी नहीं है ।*

लेकिन फ़र्श की चिकनाई
और ऊन के बारे में
आप क्या सोचते हैं ?

इसके अलावा
नाख़ून भी तो बड़े शान्त होते हैं
या बिल्ली की मूँछें और कंघे ।
और टप्पे खाने वाली वह गेन्द**

जो पड़ी रही कई सालों तक
किसी बहती हुई नाली में चुपचाप
जिसने कभी कोई
आवाज़ निकालने की
कोई कोशिश तक नहीं की

या फिर किसी खोखे के पास
पड़ी एक बेंच
जो व्यापक मौन का अवतार रही ।

मैं ऐसी ही
बहुत-सी चीज़ें गिना सकता हूँ —
मसलन डाकटिकट, पेपर-नैपकिन, कण्डोम

जो पड़े रहते हैं यूँ ही,
बिकने के लिए मशीन में
लेकिन फिर भी
बात उस कवि की ही ठीक थी —

हमारी इस
भरी-पूरी दुनिया में
हिमपात से ज़्यादा शान्त
और कुछ भी नहीं है ।

* प्रसिद्ध डच कवि हेल्ग रोहडे (1870-1937) की एक कविता-पंक्ति।
** प्रसिद्ध डच लेखक हांस क्रिस्चियन एण्डरसन की बालकथा — ’द टॉप एण्ड द बॉल’ का ज़िक्र है यहाँ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
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