भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ |अनुवादक=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
क्यारी पर झुकी हुई औरत को देखकर
भटक जाता है मेरा ध्यान
गुलाब के फूलों की तरफ़ से ।
जिस बग़ीचे में वह खड़ी है
लगने लगता है वह
अल्बर्टा काइरो* की कविता में व्यक्त बग़ीचा ।
क्यारियों में लगे फूल इतने डरे-डरे लगते हैं
मानो पुलिस आने वाली हो उनके पास ।
इस तरह के बग़ीचे ज़रा भी प्राकृतिक नहीं होते ।
उन्हें इस तरह लगाया जाता है
मानो कोई सैन्य-परेड हो रही हो ।
ऊपर की ओर उठा औरत का पिछवाड़ा
मेरे मन में छिपी वृत्तियों को उकसाता है
अब मेरे दिमाग में सरक रहा है
आदिम तृष्णाओं और वृत्तियों का साँप ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ
|अनुवादक=अनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
<poem>
क्यारी पर झुकी हुई औरत को देखकर
भटक जाता है मेरा ध्यान
गुलाब के फूलों की तरफ़ से ।
जिस बग़ीचे में वह खड़ी है
लगने लगता है वह
अल्बर्टा काइरो* की कविता में व्यक्त बग़ीचा ।
क्यारियों में लगे फूल इतने डरे-डरे लगते हैं
मानो पुलिस आने वाली हो उनके पास ।
इस तरह के बग़ीचे ज़रा भी प्राकृतिक नहीं होते ।
उन्हें इस तरह लगाया जाता है
मानो कोई सैन्य-परेड हो रही हो ।
ऊपर की ओर उठा औरत का पिछवाड़ा
मेरे मन में छिपी वृत्तियों को उकसाता है
अब मेरे दिमाग में सरक रहा है
आदिम तृष्णाओं और वृत्तियों का साँप ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>