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अपनी अलग चिन्हारी रख / बसंत देशमुख
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14:27, 20 नवम्बर 2008
<Poem>
अब नही उनसे यारी रख
<br />
अपनी लडाई जारी रख
<br />
भूख ग़रीबी के मसले पे
<br />
अब इक पत्थर भारी रख
<br />
कवि मंचों पर बने विदूषक
<br />
उनके नाम मदारी रख
<br />
भीड़-भाड़ में खो मत जाना
<br />
अपनी अलग चिन्हारी रख
<br />
</poem>
अनिल जनविजय
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