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बिना नारी कोमलता के, यारो, जीना भी कोई जीना है ?
इस तन्वंगी के आकर्षण में ही प्यार झलकता झीना है ?
कैसे आएगी आँखों में स्नेह-राग बिना जीवन की चमक ?
कमज़ोर लगेंगे हाथ तेरे, गर छू ना पाएँ रमणी की पलक ।

एक बड़े अन्धेरे वितान से, उसे देख रहे तुम बड़े मान से,
सपना जो बसा है आँखों में, उसी कल्याणी की पहचान से,
देखा है बचपन से चित्रों में उसे, किताबों में पढ़ा है तुमने उसे,
वो ऊँचे चौड़े माथे वाली रम्या, तुमने मन में बसा रखा है जिसे ।

तुम उसे कहो लाउरा अपनी, या यूलिया कहकर पुकारो उसे,
या येलेना कहो बड़े लाड़ से और सिर पर अपने बैठा लो उसे,
बिन उसके जीवन की गमक नहीं, तुम देखते हो उसका सपना,
उस सुभगा बिन यह जीवन नहीं, बस, प्यार उसी का है अपना ।

1927

'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद -- अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए'''
НИНА БЕРБЕРОВА

Без женской нежности, друзья, как жить?
Без женской прелести кого любить?
Глазами бедными кому сиять?
Руками слабыми кого искать?

Глядит с большого тёмного холста
Навеки данная тебе мечта,
Она к тебе из незабытых книг
Высоколобый свой подъемлет лик.

Ее Лаурой, Юлией зови,
Или Еленою, но без любви
Ты жить не можешь. Всем нам снится сон,
Никто любовию не обойден.

1927
</poem>
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