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|रचनाकार=कमलेश
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}}
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<poem>
इस भूलभुलैया में
कहीं पहुँचना है,
प्रवेश हर दिशा से है,
टकरा दीवाल से
भीतर पता चलता है
भटक गए इस बार ।
स्थान ज्ञात नहीं
जहाँ पहुँचना है
जब तक अज्ञात है
तब तक है पास कहीं...।
पहनावा, देह यह
दुनिया, दिखावा यह
जिसका भी वास है
भीतर इस तन के
वही है क्या वह
जो तुम्हारे पास है !...
</poem>
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इस भूलभुलैया में
कहीं पहुँचना है,
प्रवेश हर दिशा से है,
टकरा दीवाल से
भीतर पता चलता है
भटक गए इस बार ।
स्थान ज्ञात नहीं
जहाँ पहुँचना है
जब तक अज्ञात है
तब तक है पास कहीं...।
पहनावा, देह यह
दुनिया, दिखावा यह
जिसका भी वास है
भीतर इस तन के
वही है क्या वह
जो तुम्हारे पास है !...
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