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<poem>
सब कुछ तो नहीं चाहिए
चाहिए वही था,
जो है पड़ोसी के पास
या किसी मित्र के पास
या फिर देखा था जो
रिश्तेदार के पास

लालसा का कलरव है
क्या-क्या चाहिए?
स्मृति का भ्रम है
क्या नहीं है पास।

कटते पेड़ों ने,
उलटते-पुलटते मौसम-क्रम
ने बताया,
सूखती नदियाँ,
और पिघलते हिमखण्ड ने भी
बता रहे हैं हमारे चाहने की हद

लालच ने पहुँचा दिया है
चाहतों को हद से अनहद तक
हमें क्या चाहिए
सूखा या सैलाब,
या सुकून भरी ज़िन्दगी॥
</poem>
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