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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
युद्धरत रहता है
एक कमल तो
सबके भीतर
खिल भी सकता है
एक दिन
सम्भावनाएँ हैं
जाग जायेगा एक दिन
बुद्ध छिपा रहता है
सबके भीतर
बरगद के वृक्ष ने
बताया था,
मैं' को हटाना,
देखोगे अनन्त छुपा है
मैं के भीतर॥
</poem>
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|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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युद्धरत रहता है
एक कमल तो
सबके भीतर
खिल भी सकता है
एक दिन
सम्भावनाएँ हैं
जाग जायेगा एक दिन
बुद्ध छिपा रहता है
सबके भीतर
बरगद के वृक्ष ने
बताया था,
मैं' को हटाना,
देखोगे अनन्त छुपा है
मैं के भीतर॥
</poem>