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|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
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<poem>
ये भी बड़ी हद है,
कहते हो नमक के
भीतर भी मीठा शहद है
बातें तुम्हारी अनहद हैं,
जानते ही नहीं
कि नमक और शहद
के बीच तो एक बड़ी-सी सरहद है
या तो नमक है इस पार,
या फिर उस पार शहद है

जानती है क्या रसना
क्या है कामना
और कहाँ से उठ रही
शहद की वासना
खोजती है नमक इस पल
तो शहद अगले क्षण

नमक और शहद का आलिंगन
घटता है किसी क्षण
और ठहरता है तालमेल
सिर्फ़ क्षण भर
ना वासना छोड़ी जाती है
ना कामना उम्र भर

अफ़सोस,
न सहेजा गया
चुटकी भर नमक और
बूँद भर शहद
रंग रोशनी रूप सब खो गये
और कथ्य भी
बचा था जो बिम्ब थे
और चाह
बतलाओ
कहाँ था नमक
और कहाँ था शहद॥
</poem>
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