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<poem>
सन्ध्या की दहलीज
पार करते हुए,
जब दिन थक कर
समा रहा होता है रात में,
चुन रहे होते हैं कविताएँ
घोंसले की और
लौटते परिन्दे ...
और गिरा जाते हैं
कुछ कविताएँ

कविताएँ सोने नहीं
देती रात भर,
जानते हैं परिन्दे
सुकून क्या है
खुब पहचानते हैं
परिन्दे
</poem>
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