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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
जीवन और मृत्यु के बीच
है उपस्थित
एक ही सच, प्रेम
सूने विराट शून्य
के सम्मुख इस पार
प्रेम खड़ा है दरख्त की तरह
कविताओं में अपनी जड़ें जमाये हुए
कवि व्यर्थ शब्दों को
गवायाँ ना करो
इस नश्वरता में तुम
बस कविताओं को
बचा लेना
</poem>
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|रचनाकार=सुनील कुमार शर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
जीवन और मृत्यु के बीच
है उपस्थित
एक ही सच, प्रेम
सूने विराट शून्य
के सम्मुख इस पार
प्रेम खड़ा है दरख्त की तरह
कविताओं में अपनी जड़ें जमाये हुए
कवि व्यर्थ शब्दों को
गवायाँ ना करो
इस नश्वरता में तुम
बस कविताओं को
बचा लेना
</poem>