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<poem>
तीखा तीखा ज़हर सरीखा,
कुछ खायें तो बात बनें,
मर जायें तो बात बनें।

बेशक कोई आवारा होगा,
पर अपनो को प्यारा होगा,
कौन बहकता है बेमतलब,
कुछ तो तेरा इशारा होगा,
इन्हीं इशारों में फँस-फँस कर,
गश खायें तो बात बने,
मर जाएँ तो बात बने।

सर्द रात में नदी किनारे,
यारों के संग आग तापते,
मिनट-मिनट के बीस ठहाके,
कुछ ताज़ी कुछ बासी बातें,
और नदी की उस कलकल में,
चिल्लायें तो बात बने,
मर जाएँ तो बात बने।

उस पहाड़ की वह पगडंडी,
काली-काली ठण्डी-ठण्डी,
पाइन के उस पेड़ के ऊपर,
नाम लिखा शत बार तुम्हारा,
कालेपन में उस पहाड़ के,
घुल जाएँ तो बात बने,
मर जाएँ तो बात बने।

बात अभी तो कल की ही है,
महफ़िल पूरी जमी हुए थी,
एक मुहलगा मित्र हमारा,
पूछ लिया है नाम ज़हर का,
फिर पसरा तगड़ा सन्नाटा,
उत्तर के इस सन्नाटे में,
खो जाएँ तो बात बने,
मर जाएँ तो बात बने।
</poem>
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