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<poem>
मेरी मंज़िल ढूँढ रही है
अपना रस्ता मयखानों में
तूफ़ानों में, चट्टानों में
हिमआलय की स्याह गुफा में
भटकी हुई किसी नौका में
महानगर के इक हॉटल में
लाँग-ड्राइव वाली मॉटल में
दूर गाँव की पगडंडी में
बर्फीली काली ठंडी में
मेघालय वाली बारिश में
मरू भूमि की लाल तपिश में,

पर इन सबसे क्या होना है
मुझको तो बस मैं होना है
कैसी मंज़िल क्या है रस्ता
जो होना है सो होना है।
</poem>
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