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|रचनाकार=वैभव भारतीय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
दर्द के उस पार क्या है
झांक लो जब भी समय हो
कुछ बड़ा ही शुभ मिलेगा
दर्द का संपुट मिलेगा।
दर्द अथश्री है कथा की
इक नया शुरुआत करती
हर प्रसव पीड़ा यहाँ
नव-सृष्टि का आग़ाज़ करती।
दर्द क्या इक साक्ष्य है कि
साँस अब तक चल रही है
दर्द क्या इक आँच है कि
आग अब तक जल रही है।
दर्द भावों की कसौटी
शुद्ध सब कुछ छान लाता
हर मिलावट भस्म करता
मृत सुरों में प्राण लाता।
दर्द दुनिया की शपथ है
अंजुली में सीख भरके
बस वही आबाद होता
पी चुका जो पीस करके।
</poem>
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दर्द के उस पार क्या है
झांक लो जब भी समय हो
कुछ बड़ा ही शुभ मिलेगा
दर्द का संपुट मिलेगा।
दर्द अथश्री है कथा की
इक नया शुरुआत करती
हर प्रसव पीड़ा यहाँ
नव-सृष्टि का आग़ाज़ करती।
दर्द क्या इक साक्ष्य है कि
साँस अब तक चल रही है
दर्द क्या इक आँच है कि
आग अब तक जल रही है।
दर्द भावों की कसौटी
शुद्ध सब कुछ छान लाता
हर मिलावट भस्म करता
मृत सुरों में प्राण लाता।
दर्द दुनिया की शपथ है
अंजुली में सीख भरके
बस वही आबाद होता
पी चुका जो पीस करके।
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