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<poem>
क़िस्सा मोहब्बत का ना होता तो बता देता
मैं ख़ुद ग़ुमशुदा ना होता तो पता देता।

यहाँ तक आते-आते उतर जाते हैं कितनों के वसंत
मैं अकेला बेरंग हुआ होता तो बता देता।

पता मुझको भी सब है बस बताता नही।
बताने की शर्त ना होती तो बता देता।
</poem>
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