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<poem>
आता-जाता ख़ुद नहीं, करते रहते शोर।
तैयारी पूरी नहीं, कैसे मिलता छोर॥

मन उनका चंचल सदा, कैसे हो उत्थान।
दोषारोपण ही करें, करते वे अभिमान॥

आँगन टेढ़ा वे कहें, कहाँ पता है नाच।
वाद्य-यंत्र जाना नहीं, बजता कैसे साज॥

मिलते नंबर कम जिसे, मानें शिक्षक भूल।
खुद पढ़ते वे हैं नहीं, कहते गुरु हैं मूल॥

बढ़ चढ़कर ही बोलते, निज का ही गुणगान।
ज्ञान-शून्य होते भले, कहते हैं विद्वान॥

मियाँ मिट्ठू वे बन रहें, ख़ुद ही पीटे ढोल।
खुलती जब भी पोल है, हो जाते वे गोल॥

लिखना आता है नहीं, करते कॉपी आज।
कविता चोरी वे करें, निंदनीय यह काज॥

खाली ही दिमाग़ है, कैसे ग़लती दाल।
दुश्मन हैं वे अक्ल के, बजते हैं बस गाल॥
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