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|अनुवादक=गरिमा श्रीवास्तव
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<poem>
बुरका न पहनने पर
त्रिपोली में जिस लड़की को
सरे-राह मारा गया —
वह मैं हूँ ।

जर्सी पहन फ़ुटबाल खेलने पर
ढाका में जिस लड़की को
सताया गया —
वह मैं हूँ ।

अकेले देश बाहर जाने के जुर्म में
जो लड़की रियाद की जेल में ग —
वह मैं हूँ ।

प्रेम करने के अपराध में
जिस लड़की को काबुल में
संगसार किया गया —
वह मैं हूँ ।

पति ने पीटकर
जिस लड़की की दमिश्क में
हत्या कर दी —
वह मैं हूँ ।

शादी के लिए
राज़ी न होने पर
जिस लड़की की काहिरा में
हत्या कर दी गई —
वह मैं हूँ ।

शान्ति स्थापना के प्रयास में
मगाधीसू में रास्ते पर उतरी
जो लड़की मारी गई —
वह मैं हूँ ।

नहीं देखने दिया जाता मुझे प्रकाश की ओर
नहीं खड़ा होने दिया जाता मुझे अपने पैरों पर
ज्यों हूँ मैं पक्षाघात की शिकार जन्मजात ।

दबा दिया जाता है मेरा गला
अधिकार चाहते ही
पीस दिया जाता है मुझे धर्म की चक्की में
अधिकार की बात करते ही
गाली दी जाती है वेश्या कहकर
अधिकार माँगते ही ।

जकड़ दिया जाता है मुझे ज़ंजीरों में
अधिकार चाहते ही
कर दी जाती है हत्या
अधिकार चाहते ही,
जला दिया जाता मुझे आग में
अधिकार चाहते ही ।

हो गई हूँ इस्पात जल - जलकर
अंगारा नहीं
मत आना मुझे लतियाने, तुम चूर चूर हो जाओगे
मत आना चाबुक चलाने, दाग भी न पड़ेंगे मेरी देह पर
मत आना धर्षित करने, लहुलुहान भी न होऊँगी मैं

मत चलाना छुरी
होगी नहीं मेरी मृत्यु ।

'''मूल बंगला भाषा से अनुवाद : गरिमा श्रीवास्तव'''
</poem>
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