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<poem>
उस लड़की ने
सिर्फ़ टाइप किया
मेहनत से
साफ़-साफ़
शुद्ध
हमेशा हिज्जों की पूरी हिफ़ाज़त के साथ

ज़्यादातर, जो उसने टाइप किया
अन्याय के बारे में था
समाज में औरत की हालत के
बारे में था

ज़्यादातर उसने टाइप किया
उसने सिर्फ़ टाइप किया

रोटी के अपने पीतल के
गोल डिब्बे को खोलकर
जलते हीटर की रोशनी और आँच में
धीरे-धीरे
अपने खाने को खाने लायक़ बनाती थी
वह लड़की
उँगलियों को चटकाते हुए वह लड़की
काँप जाती थी किसी जगह आज
टाइप करने को कहीं ‘प्रेम’ शब्द न हो
ज़्यादातर शब्द दूसरे थे
जिन्हें हमेशा वह सही टाइप करती थी

अस्पताल में ऑक्सीजन पर पड़ी रही
दस दिन वह लड़की
किसी लापरवाह व्यक्ति के बारे में कुछ बुदबुदाती
जमा - जोड़ - गुणा बड़बड़ाती
उस लड़की की लाश पर उसकी बूढ़ी माँ
चीख़ती रही
सबके सामने

उस लड़की की कहानी
कभी किसी ने टाइप नहीं की ।
</poem>
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