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<poem>
जब तय करेंगे बसंत से पतझड़ का सफ़र हमतुम,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।

जब संताने जा बसेगीं अपने अपने घोसलों में,
रह जाएँगे हम तुम
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।

जब मेरी पीड़ा बन जाए तुम्हारी पीड़ा,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।

जब आदि हो चुके होंगे हम।
एक दूसरे की अच्छी बुरी आदतों के,
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
जब बना न पाऊँ वेणी दुखते हो मेरे हाथ
सँवार कर मेरे बालों को
जता देना प्रेम।
और तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।

जब लड़खड़ा जाऊँ चलते चलते,
संभाल लेना तुम
कांधे का सहारा दे।

बाँध लेना आलिंगन में और तब करना तुम प्रेम
सर्वाधिक।

यादों के झरोखों में झाँकते जब लड़ते झगड़ते मिलेंगे हम
मुस्कुराकर किसी बात पर यूहीं
तब करना तुम प्रेम सर्वाधिक।
</poem>
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