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{{KKRachna
|रचनाकार=निमिषा सिंघल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सोचती हूँ!
कुछ कहूँ या न कहूँ
चुप रहूँ! या न रहूँ
तुम्हारा
अब और इंतजार
करूं! या न करूं
अजीब कशमकश है।
चुप रहना।
सहा नहीं जाता,
बिन कहे भी रहा नहीं जाता।
सोच रही हूँ
आज कह ही देती हूँ ।
एक तुम हो
जो बुद्ध बने बैठे
मेरे चेहरे की बैचेनियाँ पढ़ लेते हो
अच्छा नहीं तुम्हारा मुझे देख मुस्कुराना।
नाराज़ हुई एक बार तो मना नहीं पाओगे
तुम बने रहना बुद्ध
मैं बोधि वृक्ष में समा
जाऊँगी ।
कम से कम तुम्हारे सान्निध्य में तो रह पाऊँगी!
नहीं बनना है मुझे यशोधरा याद रखना।
</poem>
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<poem>
सोचती हूँ!
कुछ कहूँ या न कहूँ
चुप रहूँ! या न रहूँ
तुम्हारा
अब और इंतजार
करूं! या न करूं
अजीब कशमकश है।
चुप रहना।
सहा नहीं जाता,
बिन कहे भी रहा नहीं जाता।
सोच रही हूँ
आज कह ही देती हूँ ।
एक तुम हो
जो बुद्ध बने बैठे
मेरे चेहरे की बैचेनियाँ पढ़ लेते हो
अच्छा नहीं तुम्हारा मुझे देख मुस्कुराना।
नाराज़ हुई एक बार तो मना नहीं पाओगे
तुम बने रहना बुद्ध
मैं बोधि वृक्ष में समा
जाऊँगी ।
कम से कम तुम्हारे सान्निध्य में तो रह पाऊँगी!
नहीं बनना है मुझे यशोधरा याद रखना।
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