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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरजीत पातर
|अनुवादक=चमन लाल
|संग्रह=कभी नहीं सोचा था / सुरजीत पातर
}}
{{KKCatKavita}}
[[Category:पंजाबी भाषा]]
<Poem>
लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ
लगता है,
मैं ब्रह्माण्ड के संकेत नहीं समझता
पल-पल की लाश
पुल बनकर
मेरे आगे बिछ रही है
और मुझे लिए जा रही है
किसी ऐसी दिशा में
जो मेरी नहीं
गिर रहा है
मेरी उम्र का क्षण-क्षण
कंकड़ों की तरह
मेरे ऊपर
ढेर बन रहा बहुत ऊँचा
नीचे से सुनती नहीं मुझे मेरी आवाज़
आधी रात में
जब कभी जागता हूँ
सुनता हूँ कायनात को
तो लगता है
बहुत बेसुरा गा रहा हूँ मैं
छोड़ चुका हूँ सच का साथ
मुझे कुचलने पड़ेंगे अपने पदचिह्न
लौटाने होंगे अपने बोल
कविताओं को उलटा टाँगना होगा
घूम रहे सितारों-नक्षत्रों के बीच
घूम रहे ब्रह्माण्ड के बीच
सुनाई देती है
किसी माँ की लोरी
लोरी से बड़ा नहीं कोई उपदेश
चूल्हे में जलती आग से नहीं बड़ी कोई
रोशनी
लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ ।
'''पंजाबी से अनुवाद: चमन लाल'''
</poem>
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|अनुवादक=चमन लाल
|संग्रह=कभी नहीं सोचा था / सुरजीत पातर
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[[Category:पंजाबी भाषा]]
<Poem>
लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ
लगता है,
मैं ब्रह्माण्ड के संकेत नहीं समझता
पल-पल की लाश
पुल बनकर
मेरे आगे बिछ रही है
और मुझे लिए जा रही है
किसी ऐसी दिशा में
जो मेरी नहीं
गिर रहा है
मेरी उम्र का क्षण-क्षण
कंकड़ों की तरह
मेरे ऊपर
ढेर बन रहा बहुत ऊँचा
नीचे से सुनती नहीं मुझे मेरी आवाज़
आधी रात में
जब कभी जागता हूँ
सुनता हूँ कायनात को
तो लगता है
बहुत बेसुरा गा रहा हूँ मैं
छोड़ चुका हूँ सच का साथ
मुझे कुचलने पड़ेंगे अपने पदचिह्न
लौटाने होंगे अपने बोल
कविताओं को उलटा टाँगना होगा
घूम रहे सितारों-नक्षत्रों के बीच
घूम रहे ब्रह्माण्ड के बीच
सुनाई देती है
किसी माँ की लोरी
लोरी से बड़ा नहीं कोई उपदेश
चूल्हे में जलती आग से नहीं बड़ी कोई
रोशनी
लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ ।
'''पंजाबी से अनुवाद: चमन लाल'''
</poem>