भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम क्या गए ये पृथ्वी सूनी हो गई
जैसे काटने को दौड़ता है हर दिन
कैसे बिताऊँ यह जीवन पहाड़-सा
अब तुम ही बताओ, तुम्हारे बिन
उड़ रहे नभ में कविताओं के बीच
तुम बन गए फूलों का पराग
कवियों के मन में बस गए हो तुम
कभी राग बन झरते हो, कभी आग
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
तुम क्या गए ये पृथ्वी सूनी हो गई
जैसे काटने को दौड़ता है हर दिन
कैसे बिताऊँ यह जीवन पहाड़-सा
अब तुम ही बताओ, तुम्हारे बिन
उड़ रहे नभ में कविताओं के बीच
तुम बन गए फूलों का पराग
कवियों के मन में बस गए हो तुम
कभी राग बन झरते हो, कभी आग
</poem>