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{{KKRachna
|रचनाकार=नेहा नरुका
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उनका एक बेटा
मर गया था ।
पूरा जीवन उसे याद करके
रोज़ सुबह रोईं वे
पर जब भी सोतीं
सपने में उसे ज़िन्दा पातीं ।
जैसे ही सपना टूटता
बेटा फिर मर जाता ।
इस तरह रोज़ बेटा मरता
रोज़ वह रोतीं ।
एक दिन वे भी मर गईं !
वे भी अपने उस
बेटे की तरह थी ।
पर मैं
उनकी तरह नहीं हूँ !
</poem>
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<poem>
उनका एक बेटा
मर गया था ।
पूरा जीवन उसे याद करके
रोज़ सुबह रोईं वे
पर जब भी सोतीं
सपने में उसे ज़िन्दा पातीं ।
जैसे ही सपना टूटता
बेटा फिर मर जाता ।
इस तरह रोज़ बेटा मरता
रोज़ वह रोतीं ।
एक दिन वे भी मर गईं !
वे भी अपने उस
बेटे की तरह थी ।
पर मैं
उनकी तरह नहीं हूँ !
</poem>