भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरभजन सिंह |अनुवादक=गगन गिल |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरभजन सिंह
|अनुवादक=गगन गिल
|संग्रह=जंगल में झील जागती / हरभजन सिंह / गगन गिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इस सड़क पर कोई हादसा हो
मैं घर जाऊँ

बहुत देर से इस चौराहे पर
खड़ा कर रहा हूँ इन्तज़ार
शायद कुछ हो जाए

कहीं कोई ठीकरी नहीं टूटी
इस शहर के अजब बेमर्ज़ी लोग
बत्ती कहे तो रुक जाएँ
बत्ती कहे तो चल दें
थके-थके बह रहे बासी-बासी पानी
किस साज़िश ने सारा शहर लील लिया है ?
किसने मंत्रमुग्ध कर ली है चाल शहर की ?

अब तो इस शहर में कुछ भी हो नहीं सकता
किसी के माथे में नहीं जलती अपनी बत्ती
किसी की अपनी चाल नहीं है...

सोच रहा हूँ कुछ तो हो
कोई अचानक किसी कार के नीचे दब जाए
अचानक जगे माथे में रोशनी अवज्ञाकारी
मैं ही वहशी क्रोध में आकर
लाल हरी बत्ती खा जाऊँ
धुँधलके में से नव-रचना जागे

इस सड़क पर कोई हादसा हो
मैं घर जाऊँ ।

'''पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,594
edits