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|संग्रह=जंगल में झील जागती / हरभजन सिंह / गगन गिल
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<poem>
चलो दस्तपंजे के बिना ही
विदा हो जाएँ
मेरा हाथ ख़ुदकुशी के कारण
रस्म से मुक्त है

ख़ुदकुशी के किनारे
हाथ से पूछा था मैंने :
मेरी ख़ातिर तू मेरे दोस्तों की तरफ़
दस्तपंजा बनकर बढ़ता था
तेरे बिना दोस्ती का क्या बनेगा
तेरी हथेली पर अब तक लिखी
क़िस्मत की रेखा
मेरे बिना कौन इसको जिएगा

ख़ुदकुशी की धुन में पक्के
मेरे हाथ ने कहा :
मैं तुझको दोस्ती के दम्भ से
मुक्ति दूँगा
ख़ुदकुशी के बग़ैर कोई भी मुक्ति नहीं मुमकिन
अपने से पहले
अपनी क़िस्मत को मरने दे
कि तुझे ढंग आए बिना क़िस्मत जीने का

तुझसे पहले जो भी था तेरे लिए
मैं अपने साथ उस को दफ़न करता हूँ
अजनबी धूप में बे-क़िस्मत गीत
अपनी छाया ख़ुद बनाएँगे

चलो बिन दस्तपंजे ही
विदा हो जाएँ
मेरा हाथ ख़ुदकुशी के कारण
रस्म से मुक्त है ।

'''पंजाबी से अनुवाद : गगन गिल'''
</poem>
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