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Kavita Kosh से
धरती की जीवन धाराओं में मत घोलो और गरल
विष वल्लरी उगायी जो है उसे न और बढ़ओ बढ़ाओ तुम।
जागो जागो भैतिकता की निद्रा से जागो मानव!
जगह जगह पर पेड़ लगाओ जल बरसाओ सुख पाओ
किन्तु लोभ की सीमाओं से पहले बाहर आओ तुम।
हरियाली है खुशहाली-, खुशहाली ही हरियाली है
मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा मुझको शीघ्र बचाओ तुम।
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